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दर्शनावरण कर्मके संवैध भंग ३३ अर्थ-दर्शनावरणकी नौ प्रकृतियोका बन्ध होते समय चार या पाँच प्रकृतियोका उदय और सत्ता नौ प्रकृतियोकी होती है। छ और चार प्रकृतियो का वन्ध होते समय उदय
और सत्ता पहलेके समान होती है। चार प्रकृतियोका बन्ध और चार प्रकृतियोका उदय रहते हुए सत्ता छः प्रकृतियोकी होती है। तथा वन्धका विच्छेद हो जाने पर चार या पाँच प्रकृतियोका उदय रहते हुए सत्ता नौकी होती है और चार प्रकृतियो का उदय रहते हुए सत्ता छह और चार की होती है।
विशेषार्थ-पहले और दूसरे गुणस्थानमे दर्शनावरण कर्म की नौ प्रकृतियोका बन्ध, चार या पाँच प्रकृतियोका उदय और नौ प्रकृतियोकी सत्ता होती है। यहाँ चार प्रकृतिक उदयस्थान में चक्षुदर्शनावरण आदि चार ध्रवोदय प्रकृतियाँ ली गई हैं। तथा इनमें निद्रादिक पॉच प्रकृतियों में से किसी एक प्रकृतिके मिला देने पर पॉच प्रकृतिक उदयस्थान प्राप्त होता है। इस प्रकार नौ प्रकृतिक वन्ध और नौ प्रकृतिक सत्त्वके रहते हुए उदयकी उपेक्षा दो भंग होते हैं--(१) नौप्रकृतिक बन्ध, चार प्रकृतिक उदय
और नौ प्रकृतिक सत्त्व तथा (२) नौ प्रकृतिक बन्ध, पाँच प्रकतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्व । इनमे से पहला भग निद्राटिमेंसे किसी एकके उदयके विना होता है और दूसरा भग निद्रादिकमेसे किसी एकके उदयके सद्भाव मे होता है।
'छः प्रकृतिक वन्ध और चार प्रकृतिक बन्धके होते हुए उदय और सत्ता पहलेके समान होती है।' इसका यह तात्पर्य है कि सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर उपशामक अपूर्वकरण गुणस्थान के पहले भाग तक जीवोके छ. प्रकृतियोका बन्ध चार या पाँच प्रकृतियोका उदय और नौ प्रकृतियोका सत्त्व होता है। तथा