________________
ज्ञानावरण वाअन्तरायकर्मके सवेध भंग २७ उदय और पाँच प्रकृतिक सत्त्व यह एक भग होता है। इस प्रकार पाँची ज्ञानावरण और पाँचो अन्तरायकी अपेक्षा सवेधभग कुल दो प्राप्त होते है।
उक्त सवेध भगोका जापक कोष्टक
[७]
-
काल
भग । बन्ध प. उदय प्र० सत्त्व प्र. गुण०।
जघन्य
उत्कृष्ट
१
५
५ प्र० । ५ प्र० से१० अन्तर्मः
देशोन अपार्ध पु० प० ।
२
.
५ प्र० ५० १११. एक समय । अन्तर्मु०
कालका विचार करते समय पाँच प्रकृतिक बन्ध, पॉच प्रकृनिक उदय और पॉच प्रकृतिक सत्त्व इस भगके अनादि-अनन्त, अनादि सान्त और सादि-सान्त ये तीन विकल्प प्राप्त होते हैं। इनमेंसे प्रभव्योके अनादि-अनन्त विकल्प होता है। जो अनादि मिथ्यादृष्टि जीव या उपशान्तमोह गुणस्थानको नहीं प्राप्त हुआ सादि मिथ्यावष्टि जीव सम्यग्दर्शन और सम्यकचारित्रको प्राप्त करके तथा श्रेणी पर आरोहण करके उपशान्त मोह या क्षीणमोह हो जाते है, उनके अनादि-सान्त विकल्प होता है। तथा उपशान्त मोह गुणस्थानसे पतित हुए जीवोके सादि-सान्त विकल्प होता है। कोष्ठकमे जो इस भंगका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल देशोन अपार्ध पुद्गल परावर्त प्रमाण बतलाया है सो वह कालके सादि-सान्त विकल्पकी अपेक्षासे ही बतलाया है,