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सप्ततिकाप्रकरण सूचना-चौदह जीवस्थानोंकी अपेक्षा सात प्रकृतिक बन्ध, आठ प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्त्वका उत्कृष्ट काल एक , माथ नहीं बतलाया जा सकता है इसलिये हमने इस भंगके उत्कृष्ट कालके खानेमे 'यथायोग्य' ऐसा लिख दिया है। इसका यह तात्पर्य है कि एकेन्द्रियके चार, द्वीन्द्रियके दो, त्रीन्द्रियके दो, चतुरिन्द्रियके दो और पंचेन्द्रियके चार इन चौदह जीवस्थानोमे से प्रत्येक जीवस्थानकी आयुका अलग अलग विचार करके उक्त भंगके कालका क्र्थन करना चाहिये। फिर भी इस भंगका काल विवक्षित किसी भी जीवस्थानकी एक पर्यायकी अतेक्षा नही प्राप्त होता किन्तु दो पर्यायोकी अपेक्षा प्राप्त होता है क्योकि पहली पर्यायमे आयुबन्धके उपरत होनेके कालसे लेकर दूसरी पर्यायमें आयुवन्धके प्रारम्भ होने तकका काल यहाँ विवक्षित है अन्यथा इस भंगका उत्कृष्ट काल नही प्राप्त किया जा सकता है।
३. मूल कर्मोंके गुणस्थानोंमे संवेध भंग अट्ठसु एगविगप्पो छस्सु वि गुणसंनिएसु दुविगप्पो ।
पत्तेयं पत्तेयं बंधोदयसंतकम्माणं ॥५॥ अर्थ-आठ गुणस्थानोमें बन्ध, उदय और सत्तारूप कर्मों का अलग अलग एक एक भंग होता है और छ गुणस्थानोमे दो दो भग होते है। (१) 'मिस्से अपुव्वजुगले बिदिय अपमत्तो ' ति पढमदुर्ग ।
सुहुमासु तदियादी बंधोदयसत्तमंगेसु ॥--गो० कर्म० गा० ६२६