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मूल कर्मोके जीवस्थानोंमे संवेध भग २१ पृथक् जीवस्थान नहीं गिनाया है, अत इसका उपचारसे संजी पचेन्द्रिय पर्याप्त नामक जीवस्थानम अन्तर्भाव किया जा सकता है। किन्तु केवली जीव सजी नही होते हैं, क्योकि उनके क्षायोपशमिक ज्ञान नहीं रहते अत केवलीके सबित्वका निषेध करनेके लिये गाथामे उनके भगोकापृथक् निर्देश किया है । कोष्ठक निम्न प्रकार है
-
काल
वन्ध प्र० उदय प्र०
जीवस्यान।
जघन्य ।
उत्कृष्ट
अर्मुहूर्त । अन्तर्मुहूर्त
अन्तर्मुहूर्त । यथायोग्य
६
८
८
। सज्ञीप० एक समय | अन्तर्मुहूर्त
सनी प० । एक समय
अन्तर्मु०
१
।
७
७
सज्ञी प० अन्तर्मुहूर्त ।
अन्तर्मुहूर्त
१. ४
४
सयोगि के
अन्तर्मुहूर्त | देशोन पूर्वकोटि
पाँच ह्रस्व स्वरों, पाँच हस्व स्वरों के अयोगि०
के उ०का०प्र० उच्चारण काल प्र०