________________
सत्तास्थान के स्वामी व काल
१३
की तथा चार अघाति कर्मोंके रहते हुए आठोकी, मोहनीय बिना सातकी या चार अघाति कर्मोंकी सत्ता पाई जाती है ।
स्वामी - केवल चार अघाति कर्मोंकी सत्ता सयोगी और योगी जिनके होती है, अत चार प्रकृतिक सत्त्वस्थानके स्वामी सयोगी और अयोगी जिन होते है। मोहनीयके बिना शेष सात कर्मोकी सत्ता क्षीणकषाय गुणस्थानमें पाई जाती है, अत. सात प्रकृतिक सत्त्वस्थानके स्वामी क्षीणमोह जीव होते हैं, तथा आठो कर्मोकी सत्ता उपशान्तमोह गुणस्थान तक पाई जाती है, त. आठ प्रकृतिक सत्त्वस्थानके स्वामी प्रारम्भके ग्यारह गुणस्थानवाले जीव होते हैं।
काल - अभव्योकी अपेक्षा आठ प्रकृतिक सत्त्वस्थानका काल अनन्त है, क्योकि उनके एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही होता है और मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में किसी भी मूल प्रकृतिकी क्षपरणा नहीं होती, तथा भव्योकी अपेक्षा आठ प्रकृतिक सत्त्वस्थान का काल अनादि - सान्त है, क्योकि क्षपक सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थानमे ही मोहनीय कर्मका समूल नाश होता है और तब जाकर क्षीणमोह गुणस्थान में सात प्रकृतिक सत्त्वस्थानकी प्राप्ति होती है, ऐसे जीवका प्रतिपात नही होता, अत सिद्ध हुआ कि भव्योकी अपेक्षा आठ प्रकृतिक सत्त्वस्थानका काल अनादि - सान्त है । सात प्रकृतिक सत्त्वस्थान क्षीणमोह गुणस्थानमें होता है और क्षीणमोह गुणस्थानका जघन्य तथा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, अत सात प्रकृतिक सत्त्वस्थानका जघन्य और उत्कृष्ट काल भी अन्तर्मुहूर्त ही
(१) 'संतो त्ति अट्ठसत्ता खीणे सत्तेव होंति सत्ताणि । जोगिम्मि अजोगिम्मि य चत्तारि हवंति सप्ताणि ॥ - गो० कर्म० गा० ६५७ ।