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सप्ततिकाप्रकरण इनमेसे पहला भंग आयु कर्मके वन्धके समय मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक होता है शेपके नहीं, क्योकि शेप गुणस्थानोमे आयुकर्मका बन्ध नहीं होता, किन्तु मिश्र गुणस्थान इसका अपवाद है। तात्पर्य यह है कि मिश्र गुणस्थानमें आयु कर्मका वन्ध नहीं होता, अतः वहाँ पहला भग मम्भव नहीं। दूसरा भंग मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्ति वादरसम्पराय गुणस्थान तक होता है । यद्यपि मिश्र, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमे आयुकर्मका वन्ध नहीं होता, अतः वहाँ तो यह दूसरा भंग ही होता है, किन्तु मिथ्यावष्टि आदि जीवोके भी सर्वदा आयु कर्मका वन्ध नही होता, अत वहाँ भी जव श्रायुकर्मका वन्ध नहीं होता तब यह दूसरा भंग बन जाता है। तथा तीसरा भंग सूक्ष्मसम्पराय संयत जीवोके होता है, क्योकि इनके आयु और मोहनीय कर्मके विना छह कोंका ही वन्ध होता है। अब इन तीन भंगो के कालका विचार करने पर आठ, सात और छह प्रकृतिक बन्धस्थानके जघन्य और उत्कृष्ट कालके समान क्रमशः इन तीन भंगोका जघन्य और उत्कृष्ट काल जानना चाहिये, क्योकि उक्त वन्धस्थानी की प्रधानतासे ही ये तीन भंग प्राप्त होते है । इन कालो का खुलासा हम उक्त बम्धस्थानों का कथन करते समय कर आये है इसलिए यहां अलग से नहीं किया है। ____एक वेदनीयका वन्ध उपशान्तमोह, क्षीणमोह और सयोगि केवली गुणस्थानमें होता है किन्तु उपशान्त मोह गुणस्थानमें सातका उदय और आठका सत्त्व, क्षीणमोह गुणस्थानमे सातका उदय और सातका सत्त्व सयोगिकेवली' गुणस्थानमें चारका उदय और चारका सत्त्व पाया जाता है, अतः यहाँ उदय और सत्ताकी अपेक्षा तीन भंग प्राप्त होते हैं जो निम्न प्रकार हैं