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सप्ततिकाप्रकरण प्राप्त होता है। तथा सयोगिवली और अयोगिकेवली गुणम्यानोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण है. अत' चार प्रकृतिक सत्त्वस्थानका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्न और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि वर्षप्रमाण प्राप्त होता है। यहाँ कुछ कमसे आठ वर्ष सातमास और अन्तर्मुहूर्त प्रमाण कालका ग्रहण करना चाहिये।
सत्त्वस्थानी की उक्त विशेषताओं का ज्ञापक कोष्टक
काल
उत्त्वस्था० मूल प्र०
स्वामी
, नघन्य
उत्कृष्ट
- प्रकृतिक
सब
प्रारन्म ले १३ गु० ।
। अगदि । । सान्त
अनादि-अनन्त
७ प्रतिक माहनीय ।
क्षीणमोह गु०
अन्तर्मु० ।
अन्तर्नु
प्रकृतिक ४ अधाति सयोगी व अयोगी अन्तर्मु.
देशोन पूर्वको
१.आठ मूल कमाक संवैध भंग अब मूल प्रकृतियोंके बन्ध, य और सत्त्वस्थानाके परस्पर संवेधका कयन करने के लिये धागेकी गाथा कहते हैं---