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प्रन्तावना
पुण्यन्दर अनुमाग पति के चार भेट है और निम्त्र, कीर विष और हमाहन्न ये पापरूप अनुमागशक्ति के पार भेद है। जिसका नेपा नाम है वैमा दमका फल है।
जीवके गुण (गति ) दो भागोंमें पटे हुए है अनुजीवीगुण और प्रनिजीबी गुग | जिन गुणोंका मटुमाव केवल जीव में पाया जाता है वे अनुनोत्री गुम है और जिनका समाव जीवमें पाया जाकर भी जीवके मित्रा अन्य द्रव्यों भी यथायोग्य पाया जाता है वे प्रनिजीवी गुण है। इन गुणों के कारण हो को घाति और अवानि ये भेद किये गये हैं। जान, दर्शन, सम्यक्त्व, परित्र, वीर्य, लाम, दान, भोग, उपभोग और सुम्ब ये अनुजीवी गुण है। ज्ञानावरण, वर्णनावरण, मोहनीय और अन्तराय ये कर्म गुणोंका घात करनेवाले होनेमे धातिकर्म है और शेष भवामि कम है।
कर्मी विविध अवस्थाएँ -जीवकी प्रति समय जो अवस्था होती है मका चित्र कर्म है । यद्यपि जीवकी वह अवस्था टपी समय नष्ट हो जाती है अन्य समयमें अन्य होती है पर मम्झाररूपमे वह कर्ममें भकित रहती है। प्रनि समयके कम जुढे-जुटे है। और जब तक ये फल नहीं दे लेते नष्ट नहीं होने । पिना मांगे कमका क्षय नहीं।
'नामुक्तं क्षीयते कर्म ।' धर्मका भोग विविध प्रकारसे होता है। कभी जैमा फर्मका मंचय किया है उसी रूपमें उसे भोगना पड़ता है। कमी न्यून, अधिक या विपरीनरूपमे उसे भोगना पड़ता है। कमी दो कर्म मिलकर एक काम करते हैं। माता और अपाता इनके काम जुदे जुटे है पर कभी ये दोनों मिलकर मुन्न या दुम्न किसी एक को जन्म देते हैं। कमी एक कर्म विमक होकर विभागानुमार काम करता है। उदाहरणार्थ मिथ्यात्वका मिथ्यात्व, मम्यग्मियादव और मम्यक् प्रकृतिरूपसे विमाग हो जानेपर