________________
सप्ततिकाप्रकरण होते हैं । इनमे से आठ प्रकृतिक बन्धस्थानमे सव मूल प्रकृतियोका, सात प्रकृतिक बन्धस्थानमें आयुकर्मके विना सातका, छह प्रकृतिक बन्धस्थानमे आयु और मोहनीय कर्मके विना छहका तथा एक प्रकृतिक बन्धस्थानमे एक वेदनीय कर्मका ग्रहण होता है। इससे यह भी तात्पर्य निकलता है कि आयु कर्मको बाँधनेवाले जीवके आठो कर्मोंका, मोहनीय कर्मको बाँधनेवाले जीवके आठोका या आयु विना सातका, ज्ञानावरण, दर्शनावरण, नाम, गोत्र और अन्तराय कर्मको बाँधनेवाले जीवके आठोका, सातका या छहका तथा एक वेदनीय कर्मको बाँधनेवाले जीवके आठोका, सातका, छहका या एक वेदनीय कर्मका बन्ध होता है। .
स्वामी- श्रीयु कर्मका बन्ध अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक होता है, किन्तु मिश्र गुणनस्थानमे नही होता। अतः मिश्र गुणस्थान के बिना शेप छह गुणस्थान वाले जीव आयुवन्धके समय पाठ प्रकृतिक बन्धस्थानके स्वामी होते हैं। मोहनीय कर्म का बन्ध नौवे गुणस्थान तक होता है, अत. प्रारम्भके नौ गुणस्थानवाले जीव सात प्रकृतिक वन्धस्थानके स्वामी होते हैं। किन्तु जिनके आयु कर्मका बन्ध होता हो वे सात प्रकृतिक बन्धस्थानके स्वामी नहीं होते। आयु और मोहनीय कर्मके विना शेप छह कर्मोंका वन्ध केवल दसवे गुणस्थानमे होता है, अतः सूक्ष्मसांपरायिक
(१) 'श्राउम्मि अट्ठ मोहे सत्त एक्क च छाइ वा तइए । बज्झतयमि बज्मति सेसएसुं छ सत्तछ ।'–पञ्चसं० सप्तति० गा० २ ।
(२) 'छसु मगविहमवविहं कम्म वर्धति तिसु य सत्तविहं । छबिहमेकट्ठाणे तिसु एक्कमवधगो एको ॥'-गो० कर्म० गा० ४५२ ।