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प्रस्तावना
समाधान-प्रयत्नकी कमी या वाह्य परिस्थिति या दोनों । शका कदाचित् व्यवसाय आदिके नहीं करने पर भी धनप्राप्ति देसी जाती है सो इसका क्या कारण है ?
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समाधान- यहाँ यह देखना है कि वह प्राप्ति कैसे हुई है क्या किमी के देने से हुई या कहीं पढा हुआ धन मिलने से हुई है ? यदि किसीके देनेस हुई है तो इसमें जिसे मिला है उसके विद्या श्रादि गुण कारण है या देनेवालेको स्वार्थसिद्धि प्रेम आदि कारण है । यदि कहीं पटा हुआ धन मिलने से हुई है तो ऐसी धनप्राप्ति पुण्योदयका फल कैसे कहा जा सकता है । यह तो चोरी है । भत, चोरी के भाव इम धन वाप्तिमें कारण हुए न कि साताका उदय |
शका - दो आदमी एक साथ एकमा व्यवसाय करते हैं फिर क्या कारण है कि एक को लाभ होता है और दूसरेको हानि ?
समाधान - व्यापार करने में अपनी अपनी योग्यता और स समयकी परिस्थिति श्रादि इसका कारण है पाप पुण्य नहीं । सयुक्त व्यापार में एक को हानि और दूसरे को लाभ हो तो कदाचित् हानि लाभ पाप पुण्यका फल माना भी जाय । पर ऐसा होता नहीं, अतः हानि लाभको पाप पुण्यका फल मानना किसी भी हालत में उचित नहीं है ।
शका-पदि वाह्य सामग्रीका लाभालाभ पुण्य पापका फल नहीं है तो फिर एक गरीब और दूसरा श्रीमान् क्यों होता है ?
समाधान--- एकका गरीब और दूसरेका श्रीमान् होना यह व्यवस्था का फल है पुण्य पापका नहीं । जिन देशों में पूँजीवादी व्यवस्था है और व्यक्तिगत संपतिके जोड़ने की कोई मर्यादा नहीं वहाँ अपनी अपनी योग्यता व साधनों के अनुसार लोग उसका संचय करते हैं और इसी व्यवस्थाके अनुसार गरीब अमीर इन वर्गों की सृष्टि हुआ करती है। गरीब और अमीर इनको पाप पुण्यका फल मानना किसी भी हालत में उचित नहीं है । रूपने बहुत कुछ अशोंमें इस व्यवस्थाको तोड़
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