________________
प्रस्तावना
५३ उनके मतमें जीवात्मा व्यापक है इसलिये जहाँ भी उसके उपभोग योग्य कार्यकी सृष्टि होती है वहाँ उसके कम का संयोग होकर ही वैसा होता है। अमेरिकामें बननेवाली जिन मोटरों तथा अन्य पदार्थोंका भारतीयों द्वारा उपभोग होता है वे उनके उपभोकाओंके कर्मानुसार ही निर्मित होते हैं। इसीसे वे अपने उपभोकाओंके पास खिंचे चले भाते हैं। उपभोग योग्य वस्तुओंका इसी हिसावसे विभागीकरण होता है। जिसके पास विपुल सम्पत्ति है वह उसके कर्मानुसार है और जो निर्धन है वह भी अपने कर्मानुमार है। कर्म बटवारेमें कभी भी पक्षपात नही होने देता। गरीब और अमीरका भेद तथा स्वामी और सेवकका भेद मानवकृत नहीं है। अपने-अपने कर्मानुसार ही ये भेद होते हैं। ____जो जन्मसे ब्राह्मण है वह ब्राह्मण ही बना रहता है और जो शुद्ध है वह शूद ही बना रहता है। उनके कर्म ही ऐसे हैं जिससे जो जाति प्राप्त होती है जीवन भर वही बनी रहती है।
कर्मवादके स्वीकार करने में यह नैयायिकोकी युक्ति है। वैशेषिकोंकी युक्ति भी इसमे मिलती जुलती है। वे भी नैयायिकोंके समान चेतन और अचेतन गत सब प्रकारको विषमताका साधारण कारण कम मानते हैं । यद्यपि इन्होंने प्रारम्भमें ईश्वरवाद पर जोर नहीं दिया । पर परवर्ती कालमें इन्होंने भी उसका अस्तित्व स्वीकार कर लिया है।
जैन दनर्शनका मन्तव्य-किन्तु जैनदर्शनमें बनलाये गये कमवादसे इस मतका समर्थन नहीं होता। वहाँ कम वादकी प्राणप्रतिष्ठा मुख्यतया आध्यात्मिक आधारों पर की गई है।
ईश्वरको तो जैनदर्शन मानता ही नहीं। वह निमित्तको स्वीकार करके भी कार्यके आध्यात्मिक विश्लेषण पर अधिक जोर देता है। मैयायिक वैशेषिकोंने कार्य कारण भावकी जो रेखा खींची है वह उसे मान्य नहीं। उसका मत है कि पर्यायक्रमसे उत्पन्न होना, नष्ट होना, और ध्रुव