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प्रस्तावना श्वेताम्बर झार्मिक अन्यों में भी इन कोका यही धर्य किया है। ऐसी हालत में इन कमौको सनुकून व प्रतिकूल बाह्य सामग्रीके सयोग वियोगमें निमित्त मानना उचित नहीं है। वास्तवमें वर सामग्रीकी प्राप्ति अपने सपने फारगोंसे होती है। इसकी प्राप्तिका कारण कोई कर्म नहीं है।
पर मोक्षमार्ग प्रकाशको जिस मतको चर्चा की इसके सिवा दो मत और मिलते हैं। जिनमें बाह्य सामग्रीको प्राधिके कारणों का निर्देश किया गया है। इनमें से पहला मत तो पूर्वोकमतमे ही मिलता जुलता है। इमरा मन छ भिज है। आगे इन दोनोंके साधारसे चर्चा कर लेना इट है
(७) पट्खण्डागम जूलिका अनुयोगद्वारमें प्रकृतियों का नाम निर्देश करते हुए सूत्र १८ की टीज्ञामें वीरसेन स्वामीने इन कमोझी विस्तृत चर्चा की है। वहां सर्वप्रथम उन्होंने साता और ससाता वेदनीयका वही स्वरूप दिया है जो सर्वासिद्धि सादिमें पतलाया गया है। किन्तु शंका समाधान
प्रसंगले उन्होंने सातावेदनीयको जीवविपाकी भौर पुदगलविपाकी रमयरूप सिद्ध करने का प्रयत्न क्यिा है।
इस प्रकरणकै बारनेसे ज्ञात होता है कि वीरसेन स्वामीका यह मत या कि सातावेदनीय और भसाता वेदनीयका काम सुख दुखको स्त्रब करना तया इनकी सामग्रीको जुटाना दोनों है।
(२) तत्वार्थमूत्र अध्याय २ सूत्र ४ की सर्वार्थसिदि शामें वाह सामग्रीको प्रासिके कारणों का निर्देश करते हुए लाभादिको उसका कारण बतलाया है। किन्तु सिद्धोमे मतिमसंग देने पर लाभादिके साथ शरीर नामम नादिकी अपेक्षा सौर लगा दी है।
ये दो ऐसे मत हैं जिनमें बाह्य सामग्रीको प्राप्तिका क्या कारण है इसका स्पष्ट निर्देश किया है। साधुनिक विद्वान भी इनके भाधारले दोनों प्रकारके उत्तर देते हुए पाये जाते हैं। कोई वो वेदनीयको बाह्य