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महोपाध्याय समयसुन्दर ( ४१ ) हो, सौभाग्यशाली हो या दुर्भागी; वक्ता सभा के समक्ष इन प्रबन्धों को निश्चित होकर वांचन करे:
सुमेधाऽल्पमेधा वा, सुस्वरो दुःस्वरोऽपि वा। अगीतार्थः सुगीतार्थः, उद्यमी अलसोऽपि वा ॥१४॥ लज्जालुष्टचित्तो वा, सुभगो दुर्भगोऽपि वा। सभाप्रबन्ध सर्वोऽपि, निधिन्तो वाचयत्विदम् ॥१॥ यह ग्रन्थ १८ विभाग-अध्यायों में विस्तार के साथ लिखा गया है।
ऋषिमण्डल टीका, ४ विभागों में विभाजित है। यह टीका अत्यन्त ही विस्तार के साथ लिखी गई है। इसमें दृष्टान्तों की भरमार है जिसका अनुमान निम्नतालिका से हो जायगा । उदाहरणों की विपुलता को देखते हुये हम इसे टीका की अपेक्षा एक बृहत्कथा कोष कह दें तो कोई अत्युक्ति न होगी। कथानकों की तालिका इस प्रकार है:
प्रथम विभाग:१. भरत २. बाहुबलि ३. सूर्यायशा ४. महायश ५. अतिबल ६. बलभद्र ७. बलवीर्य ८. जलवीर्य १. कार्तवीर्य १०. दण्डवीर्य ११. सिद्धिदण्डिका १२. सगर चक्रवर्ती १३. मघवा चक्रवर्ती १४. सनत्कुमार चक्र०१५. शान्ति , १६. कुन्थु , १७. अर , १८. श्री पद्म , १६ हरिषेण , २०. जय , २१. महाबल, २२. अचल बलदेव २३. विजय बलदेव २४. बलभद्र बलदेव २५ सुप्रभ , २६. सुदर्शन , २७. आनन्द , २८. नन्दन , २६ रामचन्द्र , ३०. बलदेव ,
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