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कर्म छत्तीसी
कर्म विपाक घणा अति कडुआ, धर्म करो अभिराम अभिराम जी कि । ३ ।
कुरण कुरण जीव विटंब्या कर्मे, तेह तथा कहुँ कर्म विपाका अति कडुआ,
नाम जी ।
धर्म करो अभिराम जी | क ० ४ |
आदीश्वर आहार न पाम्यउ वर्ष सीम कहिवाय जी । खातां पीतां दान देवतां, मत को कर मल्लिनाथ तीर्थंकर स्त्री तराउ तप करतां माया तिण कीधी,
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( ५२७ )
अंतराय जी |क० | ५ |
लाघउ, अवतार जो ।
करमे न गिणी कार जी | क ० | ६ |
गोसाले संगम गोवाले,
कीधा उपसर्ग घोर जी । महावीर नह चीस पड़ावी,
कर्म सु केहो जोर जी |क०१७ | साठ सहस सुत नो समकाले, लागो सबलो दुख जो । सगर राय थयो मूर्छागत,
कर्म न सांसे सुख जी |क०१८ |
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