Book Title: Samaysundar Kruti Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Nahta Brothers Calcutta

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Page 794
________________ अल्पाबहुत्व विचारगर्भित श्रीमहावीर बृहत्स्तवनं ( ६२५ ) दाहिण - पुरथिमेणं, उत्तरपञ्चस्थिमेण अहिअसमा । पुचि असंख अहिआ, पच्छिम तह दाहिणुत्तरो ॥११॥ अप्पबहुत्तसरूवं, इय दिट्ठ केवलेण नाह ! तुमे । अह तह कुणसु पसायं, अहमवि पासेमि जह सक्खं ॥१२॥ इय चउदिसासु भमित्रो, तुह आणा वजिओ यवीर ! अहं। गणिसमयसुंदरोहिं, थुणिो संपइ सिवं देसु ॥१३॥ इति श्रीअल्पाबहुत्व विचारगर्भितं श्री महावीरदेववृहत्स्तन संपूर्ण ।१६। ___ संवत् १६५४ वर्षे मार्गशीर्ष वदि १ दिने बुधवासरे श्रीपत्तने श्रीकंसारपाटके कृतं चोपड़ा पा० देवजी समभ्यर्थनया। मणिधारी जिनचंद्रसूरि गीत ..'केसर अगर कपूर पूजा करी। चाढउ कुसुम की माला।शाडि नगर विश्राम विमान.............. ...............धि । खरतरगछ प्रतिपालाशडि। महतीयाण श्रीवक प्रतिबोधक । जाणत बाल गोपा(ला)....। ..........।३डि इति श्री डिल्ली मण्डन श्री जिनचन्द्रसूरि गीतं ॥१॥ जिनकुशलसूरि गीत राग-सारङ्ग दादउ""" ................................."रसावडशदास । * यह टीका सहित आत्मानन्द सभा भावनगर से बहुत वर्षों पूर्व छपा था, अब अप्राप्य है।) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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