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(६२८)
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
प्रबोधगीतम्
साझां थकां सहु ध्रम करउ, पछइ आपणउ काम । दुख आव्यां थायइ दोहिलउ, मन न रहह ठाम ॥१॥सा० जीवण जाणइ...", सउ वरस नी आस । पणि वेसास नहीं घड़ी, आविउ नाव्यो के सास ॥२॥सा. अमर तो को दीसइ नहीं, जग ऊलटय ........। बइसि रह्यउ किउं बापड़ा, करि जउ काइ थाइ ॥३॥सा. ए सामग्री दोहिली, बली नोरोग डील । भोजन प्राण..."उ, हिवइ काई करइ ढील ॥४||सा० पहिलु परिवारी रह्य, लेजे संबल साथि । समयसुन्दर कहइ...', हुस्यइ सहु सुख हाथि ॥शासा०
साजा० इति गीतं । लिखितं पंडित अगजीवनेन साध्वी लखमी माला पठन कृते
शुभम् भवतु कल्याणमस्तु ।
* (पत्र १ आधा त्रुटित मिला, इसमें दादा गुरु के १० गीत हैं जिनमें पूर्व प्रकाशित ५ गीतों को छोड़ अन्य ५ गीत यहाँ दिये गये हैं।)
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