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( ५३८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
काचे तांतण पाणी काढ्यउ,
जिन शासन जयकार जी ॥ पु०॥२४॥ काकंदी नगरी नउ वासी,
धन धनउ अणगार जो । श्रेणिक आगइ वीर वखाण्यउ,
अति उग्र तप अधिकार जी ॥ पु०॥२२॥ हुँ त्रियंच किसु बहरावु,
रथकार नइ सहु थोक जी । मृगलउ भावना मन भावंतउ,
गयो पंचम देवलोक जी ॥ पु०॥२६॥ थिर सामायिक कीधउ थविरा,
राजकुमारी थइ रंग जी । भोग संजोग घणा तिहां भोगवी,
शिव सुख लाधा संग जी ॥ पु०॥२७॥ संख श्रावक पोषह सुद्ध पाल्यउ,
वीर प्रशंस्यो तेह जी । तीर्थकर पदवी ते लहिस्यइ,
पुण्य तणा फल एह जी ॥ पु०॥२८॥ सागरचंद कियउ बलि पोषह,
राउ कोउसग्ग राय जी । निसि नभसेण तणो सबउ उपसर्ग,
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