Book Title: Samaysundar Kruti Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Nahta Brothers Calcutta

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Page 753
________________ समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि तीर्थकर नइ पारणे, कुण करसइ मुझ होडि । वृष्टि करूँ सोवन तणी, साढी बारह कोडि ॥६॥ हुँ जग सगलउ वसि करूं, मुझ मोटी छह बात। कुण कुण दान थकी तर्या, ते सुणिज्यो अवदात ॥७॥ ढाल-मधुकर नी धनसारथवाहं साधु नइ, दीधुं घृत न दान । ललनां । तीथंकर पद मई दीउं, तिण मुझ ए अभिमान । ल.। १ । दान कहइ जगि हुँ बडउ, मुझ सरिखउ नही कोय । ल.। रिद्धि समृद्ध सुख संपदा, दानइ दउलति होइ । ल./२ दा.। समुख नाम गाथापती, पडिलाभ्यउ अणगार ।ल.। कुमर सुबाहु सुख लहइ, ते तउ मुझ उपगार ।ल.।३ दा.। पांचसइ मुनि नइ पारणइ, देतउ विहरी आणि । ल.। भरत थयउ चक्रवति भलउ, ते तउ मुझ फल जाणि । ल.।४ दा.। मासखमण नई पारणइ, पडिलाभ्यउ रिपोराय । ल.। सालिभद्र सख भोगवइ, दान तणइ सुपसाय । ल.५ दा.। आप्या उडद ना बाकुला, उत्तम पात्र विशेष । ल.। मूलदेव राजा थयउ, दान तणा फल देखि । ल.६ दा.। प्रथम जिणेसर पारणइ, श्री श्रेयांस कुमार ।ल.। सेलडि रस विहरावियउ, पाम्यउ भवनउ पार । ल.७दा.। चंदनवाला बाकुला, पडिलाभ्या महावोर ।ल.। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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