Book Title: Samaysundar Kruti Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Nahta Brothers Calcutta

View full book text
Previous | Next

Page 767
________________ ( ५६८) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि अरध बिंब रवि प्राथम्यौ रे, सूत्र कहइ सुविचार । तवन कहइ तेहवह समई रे, तारा दीसइ वि च्यार ।१६।सो.। काल वेलायइं पडिकमई रे, लांबी खमासण देइ । सुध क्रिया नी खप करइ रे, मन संवेग धरेइ ।१७।सो.। जिणदत्तमरि काउसग करइ रे, पडिकमणा नइ छेह । पडिकमणउ पूरउ थयोरे, खरतरनी विधि एह ।१८।सो.। मधुरइ सरि रातई करइ रे, पोरस सीम सझाय । गीत गायइ वइरागना रे, पातक दूरि पुलाइ ।१६।सो.। ढाल चौथी-(चेति चेतन करो, एहनी ढाल ) बहु पडिपन्ना पोरसी रे, वांदइ देव उल्लास । संथारा गाथा सुणइ रे, खामइ जीवनी रासो रे ॥२०॥ धन धन ते नर-नारि, सफल करई अवतारो रे । निसि पोसउ कर भावनई भावना बारो रे २१ध.। पाप अठारइ परिहरे रे, चित धरई सरणा च्यारि । डाभ संथारइ संथरइ रे, ध्यान धरइ सुविचारो रे ।२२ध.। धरम जागरिया जागतां रे, करइ मनोरथ एह । संजम लेइसि जिणी दिनइ रे, धन दिवस मुझ तेहो रे।२३ध.। संख श्रावक पोषउ कीयौ रे, वीर बखाणउ तेह । तिण परि तुम्हे पोसौ करउ रे, जिम पामउ सिव गेहो।२४ध.। वीतभय पाटण नउ धणी रे, नाम उदयन राय । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802