Book Title: Samaysundar Kruti Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Nahta Brothers Calcutta

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Page 754
________________ दानसील तप भाव संवाद शतक (५५) पंच दिव्य परगट थया, सुन्दर रूप सरीर ।ल.दा.। पूरव भव पारेवडउ, सरणइ राख्यउ मर । ल.। तीर्थकर चक्रवति तणउ, प्रागट्यउ पुण्य पडूर । ल. दा.। गज भव ससिलउ राखियउ, करुणा कीधी सार ।ल.। श्रोणिक नइ घरि अवतर्यउ, अंगज मेघकुमार । ल..१०दा.। इम अनेक मइ ऊधर्या, कहतां नावइ पार ।ल.। समयसुन्दर प्रभु वीरजी, पहिलउ मुझ अधिकार। ल.।११दा.। सील कहइ सुणि दान तु, किसउ करइ अहंकार । आडंबर आठे पहुर, याचक सुं विवहार ॥१॥ अंतराय बलि ताहरइ, भोग्य करम संसार । जिणवर कर नीचो करइ. तुम्ह नइ पडउ धिकार ॥२॥ गर्व म कर रे दान तू, मुझ पूठइ सहु कोय । चाकर चालइ आगलिं, तउ स्यु राजा होइ ॥३॥ जिन मंदिर सोना तणउ, नवउ नीपावइ कोय। सोवन कोडि को दान द्यइ, सील समउ नहि कोय ॥४॥ सोलइ संकट सवि टलइ, सीलइ जस सोभाग । सीलइ सुर सानिध करइ, सील वडउ वहाग ॥५॥ सीलइ सर्प न आभडइ, सीलइ सीतल आगि। सीलइ अरि करि केसरी, भय जायइ सब भागि ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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