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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
रतन कंबल मुद्रडी ल्य, करिस्यइ ए सहु काज रे ।
दी आपस्य तु नइ, आधउ आपण राज रे । २० म. रिपड़उ रमतउ थकउ, चाल्यउ चंचल चिच रे । उतावलउ
उ अयोध्या, राज लेवा निमित्त रे | २१ | म. ।
ढाल श्रीजी, जाति परिया नी । सखि जादव कोडि सु परिवरे प्रियु आये तोरण वारि रे एह गीत नी ढाल ||
मीठा गीत रे ।
तिथि अवसर नाटक तिहां राजा, आगला पड़इ राति रे । मिली खलक लोगाई, वयरी मांटी बहु भांति रे । १ । नटुई नाटक करइ, मुखि गायह नर नारी मोही रह्या, पणि रोझ राति सारी नटुई रमी, पणि घर नहीं नदुई नीरस थइ भमती, भांजइ दिलगीर दान विना थई, ऊँघ सेती आंखि घोलाई रे ।
नहीं चिच रे । २ | न. । I राजा दान रे । तान मान रे । ३ | न. |
नटुयउ गाथा कही, रंग मह भंग म
करे काई रे । ४ । न ।
नश्चियं साम सुन्दरि
गाथा यथा - सुहु गाईयं सुट्टु वाइयं सुटु पालिय दीह रायं सुमिरणं ते मास मास माय ए ॥ २१ ॥
रतन कंबल क्षुल्लक दीयउ, कुमरइ दिया कुण्डल दोई रे ।
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Bear को आपियउ, राजा निजरि जोय रे | ५ | न. । पीलवा पियउ, सारथवाही दीयउ हार रे ।
पांचे अति रंजिया, तिथ दीघउ दान अपार रे | ६ | न. |
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