Book Title: Samaysundar Kruti Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Nahta Brothers Calcutta
View full book text
________________
( ५७० )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
ढाल चउथी-नीवइयानी अथवा चरण करण धर मुनिवर बंदियह
ए-श्री पुण्य पागर उपाध्याय नी कीधी साधु वदना नी ढाल। ए पांच जणे संजम आदर्यउ, श्री सद्गुरु नइ पासो जी। अचरिज लोक सहू नइ उपनउ, सहु आपइ साबासो जी। १ ए.। पाप थकी पाछा बल्यो, सफल कियउ अवतारो जी। तप जपकिरिया कीधी भाकरी, पाम्यउ भव नउ पारोजी। २ ए.। तुल्लक कुमर मांहे सवलउ हुँतउ, दाक्षिण गुण अभिरामो जी। पाप करंतां विचमें विलंब करी, प्राण्यउशुभ परिणामो जी।३ ए.। परमादइ पहिलु हुयइ पापिया, पछइ प्राण्यउ मन ठामो जी। दशवकालिक सूत्र माहे कयौ, ते उत्तम गति पामो जी। ४ ए.। ते पांचे प्रतिबूधा देखि नइ, प्रतिबूधा बहु लोको जी। समकित श्रावक नाबत आदर्या, जीवदया यथा योगो जी। ५ ए.। श्रावक श्राविका सहु को सांभलउ, तुम्हे छउ चतुर सुजाणो जी। जन्म जीवित सफलउ करउ आपणउ, करउआखड़ी पच्चक्खाणोजी सवत सोलइ सइ चउराणुयइ, श्री जालोर मझारो जी।। समयसुन्दर चउमासउ इहां रह्या,जाण्यउ लाभ जिवारोजी।७ ए.। लूणीए फसले लाग देखी करी, रोख्या आपणइ पासो जी।। रूड़ी रहणी देखी रंजिया, सहु को कहइ साबासो जी। ८ ए लूणिया फसला दृढ़ साउंसखाँ, सकज कांकरिया साहो जी। जिनसागरसूरि भावक थया, आणी मनि उल्लासो जी। ए.। रिपि मंडल टीका थकी ऊद्धर्यो, नुल्लक कुमर नउ रासो जी। समयसुंदर कहइ सामग्री सदा,लहिज्यो लील विलासोजी।१० ए.।
सर्वगाथा ५४ इति श्री क्षुल्लक रासः समाप्तः ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802