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( ५३६ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
राज ऋद्धि ततक्षण पामी इहां,
को नहीं उधार जी ॥ पु०॥१३॥ मोटो ऋषि बलदेव मुनीसर,
प्रतिबोध्या पशु वर्ग जी । दान सुपात्र दियो रथकारक,
पाम्यउ पांचमउ स्वर्ग जी ॥ पु०॥१४॥ चंपक सेठ कीधी अनुकम्पा,
दीधु दान दुकाल जी। कोड़ि छन् सोनइया केरी,
विलसइ रिद्धि विसाल जी ॥ पु०॥१५॥ सुव्रत साधु समीपे कार्तिक,
लीधउ संजम भार जी। बीस लाख विमान तणो धणी,
इन्द्र हुयउ ए सार जी ॥ पु०॥१६॥ सनतकुमार सही अति वेदन, .
सात सौ वरसां सीम जी। देवलोक तीजइ सुख दीठा, ...
निश्चल पाल्यो नीम जी ॥ ॥१७॥ रूप थकी अनरथ देखी नइ,
गयो बलभद्र वनवास जी । तप संयम पाली नई पहुंतउ,
___पांचमइ स्वर्म आवास जी ॥ पु०॥१८॥
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