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( ५४४ )
समय सुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
आलोयणा छत्तीसी दाल-ते मुझ मिच्छामि दुक्कडं, पहनी
पाप आलोय तँ आपणां सिद्ध श्रातम साख । आलोयां पाप छूटियर, भगवंत इणि परि भाख ॥ पा ॥ १ ॥ साल हिया थी काढिया, जिम कीधा तेम |
दुख देखिस नहीं सर घणा, रूपी लक्ष्मण जेम || पा. ॥ २ ॥ वृद्ध गीतारथ गुरु मिले, तम सुद्ध की । तो लोग लीजियइ, नहीं तर स्पुंस लीध ॥ पा. ॥ ३ ॥ छो अधिक जिके, पारका ल्यई पाप ।
हार छूट नहीं, साहमौ ल्यड़ संताप | पा. ॥ ४ ॥ कीधा तिम को कह नहीं, जीभ लड़ थड़ झूठ | कांटो भांगो प्रांगुली, खोत्रीजइ अंगूठ ॥ पा ॥ ५ ॥ गाडर प्रवाह तूं मूं किजे, दूषम काल दुरंत । तम साख लोहजे, छेद कर्म निकाचित जे किया, ते भोगव्यां छूट । सिथल बंध बांध्या जिके, ते तो जायइ त्रूट | पा. ॥ ७ ॥ पृथ्वी पाणी गिना, वाउ वनस्पति जीव ।
ग्रंथ कहंत ॥ पा. ॥ ६ ॥
तेहनउ आरंभ तूं करइ, स्वाद लीघउ सदीव || पा॥ ८ ॥ घर बोलउ बोबडउ, मृगापुत्र ज्यू देख | अंगोपांगे तेहनइ, मारह लोह नी मेख || पा॥ ६ ॥
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