Book Title: Samaysundar Kruti Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Nahta Brothers Calcutta

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Page 732
________________ केशी प्रदेशी प्रबन्ध (५६३ ) पोषउ पडिकमणउ करइ, साध साधवी नइ द्यइ दानो रे। शीलवत सधुंधरइ, रात दिवस करइ ध्रमध्यानो रे ।२।प.। निज स्वारथ अन-पहुंचतां, निज सूरिकन्ता नारो रे । पापिणी पति नइ विष दियउ, पिण देखस्यइ दुःख भारो रे। ३.प.। अणसण नइ आराधना छेहडइ, करि सद्गुरु शाखि रे। पाप आलोइ पडि कमी, वलि मिच्छामि दुक्कडं दाखि रे । ४ । प.। काल करीनइ ऊपनउ, पहिलइ देवलोक मझारो रे। सूरिआभ नामइ देवतां, आउखं पल्योपम चारो रे । ५। १.। आमलकल्पा आविनइ, श्री महावीर नइ आगइ रे। छत्तीस बद्ध नाटक कियउ, रूडि परि मन नइ रागिइ रे । ६ । प.। भगवंत नइ भव पूछिया कह्यउ, तु छई चरम शरीरी रे। । सूरियाभ वार्ता सहु, गौतम पूछी कहि वीरो रे।७।प.। सूरियाम तिहां थी चवी, उपजस्यइ महा-विदेहो रे । उत्तमकुल ते पामिस्यइ, पणि नहीं करइ कुटब सनेहोरे । ८।प.। थविर पासि संजम धरी, तप आम आदरस्यइ रे। केवलज्ञान लही करी, आठ कर्म तणउ अंत करिस्यइ रे । ६ । प.। रायपसेणी सूत्र थी, केशी प्रदेशी प्रबन्धो रे । समयसुन्दर कहइ मैं कियउ, सज्झाय भणी संबंधो रे ।१०। प.। ___सर्वगाथा ५७ ॥ इति श्री केशी प्रदेशी प्रबन्धः समाप्तः । सं० १६६६ वर्षे चैत्र सुदि २ दिने कृतोलिखितश्च श्री अहमदाबाद नगरे श्रीहाजापटेल पोल मध्यवर्ती श्रीवृहत्खरतरोपाश्रये भट्टारक • श्रीजिनसागरसूरि विजयिराज्ये श्रीसमयसुन्दरोपाध्यायैः पं० हर्षकुशलगणि सहाय्यैः। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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