________________
समय सुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
वाचना पांच से साधु ने देतो, योगी वटे थयो गृद्ध जो । अनार देशे सुमंगल उपनो,
( ५३० )
जोगी बड़े सम्बद्ध जी । क. | १६ |
कृष्ण पिता नइ गुरु नेमीश्वर, द्वारिका ऋद्धि समृद्ध जी ।
ढंढरण ऋषि तिहां आहार न पाम,
पूर्व कर्म प्रसिद्ध जी । क./२०१ मुनीसर,
वृत लीधउ वैराग जी ।
द्र कुमार महंत
श्रीमती नारि संघाते लुब्धउ,
एह करम विपाक जी । क. । २१।
सेलग नाम आचारज मोटउ,
Jain Educationa International
राज पिण्ड थयउ गुद्ध जी ।
मद्य पान करी रहे सूतउ,
नहीं पड़िकमरणा सुद्धि जी । क. | २२ |
।
कुवलप्रभ उत्सूत्र थकी थयउ,
तीर्थंकर दल मेलि एह देखउ
सावधाचारिज जी ।
गमाड़या, अचरिज जी । क.|२३|
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org