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( ५२% ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि वलि सुभूम अति सुख भोगवतो,
छः खंड लील विलास जी । सातमी नरक मांहे ले नांख्याउ,
कर्म नउ किंसउ बिसास जी क०।। ब्रह्मदत्त नह आंधउ कीधो,
दीठा दुख अपार जी । कुरु मती कुरु मती खड्यो पुकारे,
सातमी नरक मझार जी क०।१० इंण वखाण्यो रूप अनोपम,
ते विणस्यो तत्काल जी । सात से वरस सही बहु वेदन,
सनत्कुमार कराल जी क०।११। कष्णे कोण अवस्था पामी,
दीठउ द्वारिका दाह जी । माता पिता पण काढी न सक्या,
आप रघउ वन माह जी क०।१२। राणउ रावण सबल कहातो,
नवग्रह कीधउ दास जी । लक्ष्मण लंका गढ लूटायो,
दस सिर छेद्या तास जी क०।१३।
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