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( ५३२ ) समयसुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि
मुह जाएगी मूकी वन मांहे, सुकुमालिका सरूप सार्थवाह घर घरणी कीधी,
इम
रोहिणी साधु भरणी बहरायो, कडुओ तूंबो तेड़ि जी ।
भव अनंत भमी चउ गति मई,
कर्म नउ अकल सरूप जी । क. २६|
करम न मँके केड़ि जी । क. । ३०|
कष्ट पड़ी कमला रति सुंदरी,
जी ।
मृगांकलेखा मृगावती, सतानीक नी नार जी ।
कर्म विपाक सुणी इम कहुआ, जीव करह जिन
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कहता न आवs पार जी । क.|३१|
जीव छह करमे तूं जीतो,
धर्म जी ।
पिग हिव जीपि तूं कर्म जी । क. । ३२ |
श्री मुलतान नगर मूलनायक, पार्श्वनाथ जिन जोय जी ।
वासुपूज्य श्री सुमति प्रसाद,
लोक सुखी सहु कोय जी । क. । ३३ ।
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