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कर्म-पुण्य-छत्तीसी
। ५३३ )
श्री जिनचंद्रसरि जिनसिंहसरि,
गच्छपति गुण भरपूर जी । सिंघी जेसलमेरी श्रापक,
खरतर गच्छ पडूर जी ।क.|३४| सकलचंद सदगुरु सुपसाये,
सोलह सइ अड़सठ्ठ जी । करम छत्तीसी ए मई कीधी,
माह तणी सुदी छट्ट जी । क.।३१ करम छत्तीसी काने सुणि नइ,
करजो व्रत पच्चखाण जी । समयसुंदर कहइ सिव सुख लहिस्यउ, धर्म तणे परमाण जी । क..३६।
-०)*(.
पुण्य छत्तीसी पुण्य तणा फल परतिख देखो,
करो पुण्य सहु कोय जी । पुण्य करतां पाप पुलावे,
जीव सुखी जग होय जी ॥पु०॥१॥ अभयदान सुपात्र अनोपम,
बलि अनुकंपा दान जी ।
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