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क्षमा छत्तीसी
( ५२५)
आहार मांहे क्रोधे रिषि थूक्यउ, प्राण्यउ अमृत भाव जी। कूरगडूए केवल पाम्यउ, क्षमा तणइ परभाव जी । आ.।२२। पार्श्वनाथ नइ उपसर्ग कीधा, कमठ भवांतर धीठ जी । नरक तिर्यंच तणा दुख लाघां,क्रोध तणा फलदीठ जी। आ.।२३। क्षमावंत दमदंत मुनीसर, वन मा रह्यउ काउसग्ग जी। कौरव कटक हण्यउ इंटाले, त्रोड्यउ करम ना वग्ग जी। आ.।२४। सज्यापालक काने तरुनो, नाम्यो क्रोध उदीर जी । बिहुँ काने खीला ठोकणा, नवि छूटा महावीर जी । आ.।२५॥ चार हत्या नो कारक हुँतो, दृढ प्रहारी अतिरेक जी। क्षमा करी नइ मुगति पहुँता, उपसर्ग सही अनेक जी । आ.।२६। पहुर मांहि उपजंतो हारयो, क्रोधे केवल नाण जी। देखो श्री दमसार मुनीसर, सूत्र गण्यो उट्ठाण जी । आ.।२७। सिंह गुफा वासी ऋषि कीघउ,थूलिभद्र ऊपर कोप जी। वेश्या वचने गयउ नेपाले, कीधउ संजम लोप जी । आ.२८ चंद्रावतंशक काउसग्ग रहियउ, क्षमा तणउ भंडार जी। दासी तेल भरचउ निसि दीवउ,सर पदवी लहिसार जी। आ.।२६। एम अनेक तरचा त्रिभुवन में, क्षमा गुणे भवि जीव जी। क्रोध करी कुगते ते पहुँता, पाडता मुख रीव जी । आ.।३०। विष हलाहल कहियइ विरुयउ, ते मारइ इक वार जी। पण कषाय अनंती वेला, आपइ मरण अपार जी । ।३१॥ क्रोध करता तप जप कीधा, न पड़इ काइ ठाम जी । आप तपे पर नइ संतापइ, क्रोध सुं के हो काम जी । अा.।३२।
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