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महोपाध्याय समयसुन्दर
( ७३ )
१. पाश्वनाथ शृङ्खलामय लघुस्तव, २.जिनचन्द्रसूरि कपाटलोह शृङ्खलाष्टक, ३. पार्श्वनाथ हारबन्धचलच्छङ्खलागर्भित स्तोत्र , ४. पार्श्वनाथशृङ्गाटकबन्धस्तव* ।
कवि का रचना-चातुर्य देखिये:"निखिल-निवृत-निश्वन-नर्दितं, नतजनं सम-नर्मद-दम्भमम्। दमपदं विमदं धन-नव्यभं, नभवनं हससं शिवसंभवम् ।२। सतत-सजन-नंदित-नव्यभं, नयधनं वरलब्धिधरं समम् । रदन-नक्रमन-श्चलन-प्रियं, नलिन-नव्यय-नष्टवनं कलम् ।३।"
[पार्श्वनाथ-शृङ्गाटक-बन्धस्तब ] "श्रीजिनचन्द्रसरीणां, जयकुञ्जरशृङ्खला । शृङ्खला-धर्मशालायां, चतुरे किमसौ स्थिता ।। शृङ्खला-धर्मशालायां, वासितां पापनाशिनाम् । शिवसमसमारोहे, किमु सोपानसन्तति ।२।"
[जिनचन्द्रसूरि-कपाटलोहशृङ्खलाष्टक ] कवि के उत्तम चित्रकाव्य के द्वारा पाठकों का रसास्वादन और मनोरंजन करने के लिये हारबन्ध स्तोत्र का उदाहरण पर्याप्त है।
पादपूर्ति और काव्य कषि कृत ग्रन्थों में उद्धृत काव्यग्रन्थों की तालिका देखते हुये यह तो निश्चित है कि कवि साहित्य-शास्त्र के पूर्ण ज्ञाता थे।
कु०पृ० १८६ । कु० पृ० ३५६। । कु० पृ० १६४। * कु० पृ० १९३ x देखिये, सामने पृष्ठ पर ।
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