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श्री आदीश्वर ८ पुत्र प्रतिबोध गीतम्
( २५५ )
ते पणि प्रभुता आपणी, छोडइ पामता दुक्खो जी। भय मोटउ मरिवा तणउ,संसार मांहि नहि सुक्खो जी ।१२।सं। काम भोग घणा भोगवां, त्रिपति पूरी जिम थायो जी। ते मूरिख निज छांहड़ी, अापड़िवा नइ उजायो जी ।१३।सं। बंधण थी ताल फल पडयउ,तेहनइ को नहीं त्राणोजी । तिम जीवित त्रूटइ थकइ,केहनइ न चालइ प्रायो जी ।१४।सं। परिगृह आरंभ पाडुया, पाडुया पाप ना कर्मो जी । पाडीजइ परभवि गयां, ते किम कीजइ अधर्मो जी ।१॥२०॥ ज्ञान दरसण चारित बिना,मुगति न पामइ कोयो जी। कष्ट करइ अन्य तीरथी, मुगति न पामइ सोयो जी ।१६।सं। विरमउ पाप थकी तुम्हे, जउ पूरब कोडि आयो जी । धरम विना धंध ते सह, सफल संजम सुथायो जी ।१७।सं। जे ख़ता काम भोगवइ, राग बंधण पास बंधो जी । ते भमिस्यइ संसार मंइ. दुख भोगवता अबुद्धो जी ।१८।सं। पृथिवी जीव समाकुली, तेहनइ न दीजइ दुक्खो जी । समिति गुपति व्रत पालियइ, जिम पामीजइ सुखो जी ।१६।सं। जे हिंसादिक पाप थी, विरम्यां श्री महावीरो जी। तिण ए धरम प्रकासियउ, पहुँचाडइ भव तीरो जी ।२०।सं। गृहस्थावास मूकी करी, जे ल्यइ संजम भारो जी। बावीस परिसा जे सहइ, चालइ सुद्ध आचारो जी ।२१।सं।
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