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शुद्ध श्रावक दुष्कर मिलन गीतम्
(४६६ )
शुद्ध श्रावक दुष्कर मिलन गीतम
राग-प्रासाउरी-सिंधुइ उ. दाज-कइयइ मिलस्यइ मुनिवर एहवा-एहनी।
पाठांतर नउ गीत जाणियउ. कायइ मिलस्यइ श्रावक एहवा,
सुणिस्यइ आवि वखाणो जी। धरम गोष्ठी चरचा करिस्यां,
वीतराग वचन प्रमाणो जी ॥१॥क. ॥ धुरि थी सूधू समकित जे धरई,
मानइ नहिं य मिथ्यातो जी । साहमी सुधरणइ बहसइ नहीं,
नहि राग द्वष नी बातो जी॥२॥क. ॥ बारह व्रत सीखइ रूड़ी परि,
जां जीवइ तां सीमो जी। सूधइ मन किरिया नी खप करइ,
साचवइ चउदह नीमो जी ॥३॥ क. ॥ काल वेलागइ जे पडिकमणउ करइ,
सूत्र अरथ पाठ सूधो जी । बार अधिकार गमा त्रिण साचवइ,
गुरु वचने प्रतिबूधो जी ॥४॥क. ॥ व्यवहार (१) सूध पणु पालइ सदा,
प्रथम वडउ गुण एहो जी।
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