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औपदेशिक गीतानि
(४६१)
श्री खंभायत नगर मझारि,
खारुयावाडइ वसति अपार ॥५१॥ दीवाली दिन आणंद पूर,
श्री खरतर गच्छ पुण्य पडूर । मेघ विजय शिष्य नइ आग्रहइ,
समयमुन्दर ए सझाय कहइ ।५२। इति श्री आहार ४७ दोष सज्झाय ।
0 हीयाली गीतम् कहिज्यो पंडित एह हियाली, तुम्हे छउ चतुर विचारी। नारी एक त्रण अक्षर नामे, दीठी नयर मझारी रे । क.१। मुख अनेक पण जीभ नहीं रे, नर नारी सुराचइ । चरण नहीं ते हाथे चालइ, नाटक पाखे नाचइ रे । क.।२। अन्न खायइ पानी नहीं पीवइ, तृप्ति न राति दिहाड़इ । पर उपगार करइ पणि परतिख', अवगुण कोडि दिखाडइ । क.।३। अवधि आठ दिवस नी आपी, हियइ विमासी जोज्यो। समयसँदर कहइ समझी लेज्यो,पणि तेसरिखा मत होज्यो।क.।४।
6 हीयाली गीतम् पंखि एक वनि ऊपनउ, आव्यउ नयर मझार । आँखडली अणियालड़ी जी हो, देखइ नहिंय लगार ।।
१ पाणि
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