________________
सत्यासीया दुष्काल वर्णन छत्तीसी (५०५ ) दुखी थया दरसणी, भूख आधी न खमावह श्रावक न करी सार, खिण धीरज किम थायइ । चेले कीधी चाल, पूज्य परिग्रह परहउ छांडउ; पुस्तक पाना बेचि, जिम तिम अम्हनई जीवाडउ। वस्त्र १२ पात्र बेची करी, केतौक तो काल काढीयउ; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया,तुनइ निपट१३ निरधाटीयउ।१३। घर तेडी घणीवार, भगवानना पात्रा भरता। भागा ते सहू भाव, निपट थया वहिरण निरता। जिमता बडइ किमाड, कहै सवार छै केई यह फेरा दस पांच, जती निठ'४ जायई लेई ।
आपइ दुखह अणछूटतां, ते दूषण सहु तुझ तणउ; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, विहरण नहीं विगुचणउ१५१४ पडिकमणउ पोसाल, करण को श्रावक नाव: देहरा सगला दीठ, गीत गंधर्व न गावइ । शिष्य भणइ नहीं शास्त्र, मुख भूखइ मचकोडइ; गुरुवंदण गइ रीति, छती प्रोत माणस छोडइ । वखाण' खाण माठा पड्या गच्छ चौरासी एही गति; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, कांइ दोधी तई ए कुमति ।११
सुधा. ८ भाषी. ६ थिर. १० नहीं. ११ उद्यत करत विहार, मांड काइ बीजी मांडो. १२ पुस्तक पाना. १३ तीए, १४ नेरि. १५. विगोवरगाउ। १ पछइ माप.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org