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सत्यासीया दुष्काल वर्णन छत्तीसी (५१३ )
[२] 'पंचकष्ठि चौपाई ' के दूसरे खंड की छठी ढाल में अकाल
का इस प्रकार वर्णन किया है :तिण देसइ हिव एकदा रे, पापी पड्यउ दुकाल । बार बरस सीम बापड़ारे, कीधो लोक कराल । १।
वली मत पडिज्यो एहवो दुकाल, जिणे बिछोह्या मावाप बाल, जिणे भागा सबल भूपाल । खातां अन्न खूटी गया रे, कीजइ करण प्रकार । भूख सगी नही केहनी रे, पेट करई पोकार । २। सगपण तउ गिणे को नही रे, मित्राइ गई भूल । को कदाचि मांगै कदी रे, तौ माथे पिडइ त्रिसूल । ३ । मांन मृकि वडे माणसे रे, मांगवा मांडी भीख ।। तउ पिण को आप नहीं रे, दुखीए लीधी दीख । ४ । केई बईयर मूकी गया रे, के मूंकी गया बाल । के मा-बाप मूकी गया रे, कुण पडई जंजाल । ५ । परदेसे गया पाधरा रे, सांभल्यउ जेथ सुकाल । माणस संबल विण मूत्रा रे, मारग मांहि विचाल । ६ । बापे बेटो वेचिया रे, माटी बेची बयर । बयरे मांटी मकीया रे, अन्न न द्यइ ए बयर । ७ । गुखे बैठी गोरड़ी रे, वीजणे ढोलति वाय । पेटनै काजै पदमणी रे, जाचै घर घर जाय । ८।
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