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प्रस्ताव सवैया छत्तीसी
(५१६)
जे भ्रम करिस्यई ते निरतरस्यई, केहनउ पाड़ काई चाढ़िवउ; समयसुंदर कहइ जे धम दीजइ ते बलतइ माहि दांडउ काढिवउ।१८ व्याव्या बिना क्षेत्र किम लुणियइ, खाद्यां पाखड भूख न जाह;
आप मुयां विण सरग न जइयई, वाते पापड़ किमही न थाइ। साधु साधवी श्रावकर श्राविका एतउ खेत्र सुपात्र कहाइ; समयसुंदर कहइ तउ सुख लहियइ, जउ घर सारउ दत्त दिवाइ।१६। मस्तिकि मुगट छत्र नई चामर बइंसउ सिंहासन नई रोकि
आण दांण बरतावइ अपणी आइ नमइ नर नारी लोक । राजरिद्धि रमणी धरि परिघल जे जोयइ ते सगला थोक पणि समयसुंदर कहइ जउधम न करइतउ ते पाम्य सगलं फोका२०॥ सीस फूल स मथउ नकफूली, कानइ कुन्डल हीयइ हार; भालई तिलक भली कटि मेखल, बांहै चूडि पुणछिया सार । दिव्य रूप देखती अपछर, पगि नेउर झांझर झणकार; पणि समयसुंदर कहइ जउ धम न करइ,तउभार भूत सगलौ सिणगार मांस म खायउ मदिरा म पीयउ म करउ भांगि नइ घंटाधुटि3; चोरी म करउवाट म पाइउ, म करो झांझी अठा मठि। पर स्त्री मत भोगवउ पापी, म करउ लोक नइ लँटा लॅटि; समयसंदर कहइ नरगइ पडिस्यइ बधारा जिम कूटा कूटि ।२२॥ मनुष्य तणु आउखु जायई धरम बिना बैइसी रह्या केम; जम नीसाण चडत रा वरजई पहुर पहुर तिहां किहां थी खेम ।
१ज धरम । २ डांड। ३ साहमी साहमिणी ।
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