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( ४६२ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि हरियाली रे चतुर नर हरियाली रे, सुंदर नर जी हो कहिजो हियइ
विमासि । साचा पांच कारण कह्या जी हो, कहइ तेहनइ साबासि । ह.।२। चांचा सदा चरतउ रहइ जी हो, वमन करइ आहार । राति दिवस भमतउ रहइ जी हो, न चढइ नर वर पार । ह.।३। भूखउ बोलइ अति घणु जी हो, बोल्युनवि समझाय । नारी संघातइ नेहलउ जी हो, विनु अपराध बंधाय । हा४। ते पणि पंखी बापड़उ जी हो, प्रमदा पाड्यउ पास । समयसुंदर कहइ तेभणीजी हो,नारी नउम करिस्यउ विश्वासरीह.॥
हीयाली गीतम्
राग-मिश्र एक नारी वन मांहि उपन्नी, आवी नयर मझारि । पातलड़ी रूपइ अति रूयडी, चतुर लोक लेइ धारी रे ।। कहिज्यो अरथ हियाली केरउ, वहिलउ हियइ विमासी। विनतवंत गुणवंत तुम्हारी, नहिं तउ थास्यई हांसी रे। आ.क.। काज पियारइ देह कमावइ, नयण बिना अणियाली। सामल वरण सदा मुख सोहइ, जल पीवइ वृष टाली रे । क. ।२। मुखि नवि बोलई मस्तकि डोलइ, वचन शुभाशुभ जास। साजण दूजण पासि रमंती, दीठी लील विलास रे। क.।३। ए हीयाली हियई विमासी, कहज्यो चतुर सुजाण । समयसुन्दर कहइ जेम तुम्हारु, कीजइ घणु वखाण । क.।४।
२ बेसास
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