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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
काज किरियावर पहिलउ पछई,
जति निमित्त करइ प्रावृत्त (६) अछई | ए० | ६ | अजुयालउ करइ गउख उघाड़ि,
( ४८६ )
नाउर दोष (७) दिखाड़ि । ए० । ७ । वेची थी आणी द्यई वस्त,
क्रीत दोष (८) काउ अप्रशस्त । ए० ८ 1 ऊली नुं आणी द्यई जेह,
पामिच दोष ( 8 ) कहीजड़ तेह | ए० | ६ | वस पालटी नह घर कोइ,
तउ परिवर्तित (१०) दूषण होइ । ए० | १० | घर थी उपासर आणी देह,
ते अभ्याहत (११) दोष कहे | ए० | ११ | दाचउ ठामउ थामी अन्न,
आप ते दूषण उदभिन्न (१२) । ए०१२ | ऊंचाधी नीचु उतारि,
यह मालाहत (१३) दोष विचारि । ए० |१३| केहना हाथ थी झूटी दिज,
समादिक (१४) ते दोष अछि | ए० | १४ | सामि जीमइ एकट्ट, एक आप आधण माहि अधिक अनकूर,
तर ते अनिसिद्ध (१५) | ए० | १५ |
साथ निमित्त ते अध्यवपूर (१६) | ए० | १६ |
वण
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