________________
(४८४)
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
सात लाख भू दुग तेउ वाउ, दस चउद वन नाभेदो जी। पट विगल सुर तिरि नारकी, चार चार चउद नर वेदोजी। ल०।२। मुझ वार नहीं छई केह सँ, सहु मुंजई मैत्री भावो जी। गणि समयसुन्दर इम कहइ, पामिय पुण्य प्रभावो जी। ल०।३।
अंत समये जीव निर्जरा गीतम्
___राग-आसाउरी इण अवसर करि रे जीव सरणा,
ध्यान एक भगवंत का धरणा ॥ ३० ॥१॥ माया जाल जंजाल न परणा,
अरिहंत अरिहंत नाम समरणा ॥ इ० ॥२॥ वलि दोहिला नर भव अवतरणा,
समकित बिन संसार मइ फिरणा ॥ इ० ॥३॥ माल मलूक महल मन हरणा,
साथइ नहीं आवइ इक तरणा ॥ ३० ॥४॥ साते खेत्रे वित वावरणा,
अथिर आथि एता उगरणा ॥ ३० ॥५॥ त्रुटी नाड़ि न को काज सरणा,
करि सकइ तउ करि पहिली सवरणा॥ इ० ॥६॥ मरण तणा मत प्राणे डरणा,
ए जायइ देखि लघु वृद्ध तरुणा ॥ ३० ॥७॥
आप
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org