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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
रोग रहित पंचेन्द्री परगड़ा (२),
सोम प्रकृति (३) सुसनेहो जी ॥५॥क. ॥ लोग प्रिय उत्तम आचार थी (४),
वंचना रहित अक्ररो (५) जी । पाप करम थी जे डरता रहइ (६),
कपट थकी रहइ दूरो (७) जी ॥६॥ क. ॥ त्रोटउ आप खमी जइ पारका,
काम समारइ जेहो जी (८) । चोरी परदारादिक पाप थी, - करता भाजइ तेहो जी (8) ॥७॥क. ॥ जीवदया पालइ जतना करइ (१०),
रहइ मध्यस्थ सुदक्षो जी (११)। सोमदृष्टि (१२) गुणरागी(१३) सतकथा,
(१४) मात पिता सुद्ध पक्षो जी ॥ ८॥क. ॥ दीरघ दरसी (१५) जाण विशेषता (१६),
उत्तम संगति एको जी (१७) । विनय करइ (१८) उपकार कियउ गिणइ (१६),
हित वच्छल सुविवेको जी (२०) ॥६॥ क. ॥ लब्ध लक्ष अंगित अकारना,
जाण प्रवीण अपारो जी (२१)। एकवीस गुण श्रावक ना ए कह्या,
सूत्र सिद्धांत मझारो जी ॥१०॥ क.॥
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