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( ४६८ )
समय सुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि
राति दिवस इण रहणी रहइ, उठतउ बहसतउ अरिहंत कहइ | ६ | व्यवहार सुद्ध करइ व्यापार, वलि ल्यइ श्रावक ना व्रत बार । वलि संभारs चउदह नीम, मांग नहीं य सरह तां सीम । ७ । निंदा पणि न करs पारकी, ते करतउ थायइ नारकी । सीख भली तर इ सुविचार, पछड़ न मानइ तउ परिहार | ८ | मिथ्यात तउ मानइ नहीं मूल, वलि विकथा न करइ वातूल। देव द्रव्य थी दूरि रहइ, नहि तरि नरक तगा दुख लहइ | ६ | साहमी नइ संतोष घणु, सगपण ते जे साहमी तणुं । धरण देतां त रहs धर्म, माणस नउ बोलइ नहीं मर्म |१०| अनंत अभक्ष तणी खड़ी, जीवदया पालइ जगि बड़ी । वलि वह साते ही उपधान, सुद्ध करइ किरिया सावधान | ११ | गोती हरइ सरिखउ ग्रह वास, प्रमदा बंधण छांडइ पास । संजम कदि हूँ लेइसि सार, इसउ मनोरथ करइ अपार | १२| करणी ए श्रावक जे करइ, ते भवसागर हेलां तर । वीतराग ना एह वचन, नर नइ नारि करइ ते धन्न | १३ | परभाते पड़िकमण करइ, धर्म बुद्धि हीयइ में धरई । गुण कुलाउ ते सिव सुख लहइ, समयसुन्दर तउ साचउ कहर | १४ |
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