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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
तप जप करइ गुरु गुर्जर में,
प्रतिबोधत है भविकं सुमति ॥ तब ही चित चाहन चप भई,
समयसुन्दर के प्रभु' गच्छपति । पठइरे पतिसाहि अजब्बारे की छाप,
बोलाए गुरु गजराज गति ॥१॥ एजी गुजर ते गुरुराज चले,
बिच में चौमास जालोर रहे। मेदिनीतट मंत्रि मंडाण कियो,
गुरु नागोर आदर मान लहै ।। मारवाड़ रिणी गुरु वंदन को,
तरसै सरसै विच वेग वहै । हरख्यो संघ लाहोर आये गुरु,
पतिसाह अकब्बर पांव गहै ॥२॥ एजी साहि अकब्बर बब्बर के,
गुरु सूरत देखत ही हरखे । हम योगी यति सिद्ध साधु व्रती
सब ही षट दर्शन को निरखे ॥ तप जप्प दया धर्म धारण को,
जग कोई नहीं इनके सरखे। १ गुरु, २ भेजे, ३ अकबरी, ४ अधविच, ५ में,
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