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( ४२६ )
समय सुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
कारिमा एह कुटुंब काजइ, म कर करम कठोर रे । एकल उ जीव सहीस परभव, नरक ना दुख घोर रे || ३ |बू. ॥ काम भोग संयोग सगला, जाण फल किंपाक रे । दीसतां रमणीक दीसह, अति कटुक विपाक रे || ४ || बू ० ॥ गर्व गरथ तउ न कीज, थिर न रहस्यै कोय रे । राय फीटी रंक थावर, राय हरिचंद जोय रे ||५||बू०|| ए असार संसार मांहे, जाणि जिण भ्रम सार रे । नरक पड़तां थकां राखह, परम हित सुखकार रे || ६ || बू ० || हम जागी जीव जिन धर्म कीजइ, लीजिये कछु सार रे । समयसुन्दर कहत जीव कुं, पामियै भव पार रे ||७|| बू०॥ वैराग्य शिक्षा गतिम
म कर रे जीउड़ा मूढ, म माया सब मेरा मेरा । आप स्वारथ सब मिले, नहीं को जग तेरा ॥ म ० ॥ १ ॥ एक श्रावै चलै एकला, कुछ साथ न आवह | भली बुरी करणी करी रे, पीछे सुख दुख पावइ || म०॥२॥ धर्म विलंबन कीजियइ रे, एहु अधिर संसारा । देखत देखत वाजता रे, बड़ी में घड़ियारा || म ० ||३|| एक के उदर भी दोहिला, एक के छत्र धरीजइ । आप कीने कर्मड़े रे, किस कुं दोष न दीजइ ॥ म० ||४||
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