________________
(४६४ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
पाणी न पीवइ राते इकि वार,
पण न करइ रात्रे चउबिहार । बू० ॥२॥. नीलवण खावे नहीं दस के बार, .... पिण मायइ पाप भार अढोर ।। बू० ॥३॥ नवरा रहइ न करइ को काम,
. पण न लियइ परमेसर नु नाम ।। बू०॥४॥ गांठ रुपइया त्रण के चार,
पिण न करइ सुंस पचास हजार ॥ बू० ॥५॥ चउपद माहे घरि छालो नहीं,
हाथी नुसूस न सके ग्रही ॥ बू०॥६॥ विनय विवेक ने जाणे मरम, .. श्रावक होइ नइ न करे धरम ॥ बू० ॥७॥ पोषउ करइ ने दिवसे सूवै,
ते धर्म फल पोषह नो खुवै ॥ बू० ॥८॥ क्रिया न करइ कहावइ साध,
नाम रतन दाम न लहइ अाध ॥ बू०॥६॥ मनुष्य जन्म नवि हारो आल,
तमे पाणी पहली बांधो पाल |बू०॥१०॥ जे करइ व्रत आखड़ी पञ्चखाण,
समयसुन्दर कहइ ते चतुर सुजाण ॥०॥११॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org