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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
क्रियावंत दीसइ फूटरउ,
क्रिया उपाय करम छूटरउ । क्रि०।६। पांगलउ ज्ञान किस्यउ कामरउ,
ज्ञान सहित क्रिया आदरउ ।क्रि०७। समयसुन्दर धइ उपदेश खरउ,
मुगति तणउ मारग पाधरउ । क्रि०८) जीव-व्यापारी गीतम्
राग-देव गंधार आये तीन जणे व्यापारी । श्रा० । सूदा सूत करण कुं लागे, बइठे मांहि बखारि ।प्रा०१॥ मूल गमाइ चल्या एक मूरिख, एक रह्या मूल धारी। एक चल्या लीन लाभ बहुत ले, अब देखो अरथ विचारी;
श्री उत्तराध्ययन विचारी । प्रा०।२। लाभ देख सउदा सब करणा, कुव्यापार निवारी । समयसुंदर कहइ इण कलजुग मई, सब रहिज्यो हुसियारी ।श्रा०॥३॥
घड़ियाली गीतम्
राग-मिश्र चतुर सुणउ चित लाइ कइ, कहा कहइ घरियारा । जीवित माहि जायइ घरी, न कोइ राखणहारा । च.।१।
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