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(४५८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
सकलचंद्र गुरु सानिध कीधी, सतासियइ न थयउ तन ज्यान। समयसँदर कहइ हिव तू रेमन,करि संतोष नइ धरिध्रम ध्यान ॥२॥
आधि व्याधि रोग को उपजइ, जीव जंजाले जायइ कही। कुण जाणे कही अणुपूर्वी, जीवे बांधी मूकी अहीं। धर्म करउ ते पहिली करजो, छेहली वेला थास्या नहीं। समयसुन्दर कहै हूँ तो माहरै, बे घड़ी ध्यान धरु छू सही ॥३॥
नव-वाड़-शील गीतम्
ढाल-तुङ्गिया गिरि सिखर सोहइ नव बाड़ि सेती शील पालउ, पामउ जिम भव पार रे । भगवंत विस्तर पणइ भाख्यउ, उत्तराध्ययन मझार रे । नप.।। पसु पडंग नइ नारि जिहां रहइ, तिहां न रहइ ब्रह्मचारिरे। पहली वाड़ ए तुमे पालउ, शील बड़उ संसार रे । नव.।२। कहइ सराग कथा कदे नहीं, स्त्री मुंएकांत रे। बीजी बाड़ ए एम बोली, मानइ लोक महांत रे । नव.।३। बइयरि जिण बइसणे बइसे, वे घड़ी न बइसे तेथ रे । तीजी बाड़ि ए कही तीर्थकरे, आज्ञा मोटी एथ रे । नव.॥४॥ स्त्री. अंग उपांग सुन्दर, देखत नहीं धरि राग रे। चउथी वाड़ि ए चतुर पालउ, पामइ जस सोभाग रे । नवाश कुण्डी नइ अंतरइ पुरुष स्त्री, रमइ खेलइ रंगि रे। पंचमी वाड़ि ए तुम्हे पालउ, टालउ तेह प्रसंगि रे । नव.।६।
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