________________
( ४३२ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
पुण्य विना कहि क्युं धन पाइयइ,
पूछि न मानइ तउ पंच जनं, भाई रा.१। घर धंधइ सब धरम गमायउ,
वीसरि गयउ देव गुरु भजनं । पोटि उपाड़ि गये कुण परभवि,
म करि म करि जीव लोभ धनं, भाई रा.।२। पग माहे मरण वहइ रे मूरिख,
माया जाल म पड़ि गहनं । समयसुंदर कहइ मान वचन मेरउ,
धम करि भ्रम करि एक मनं, भाई रा.।३। पारकी होड निवारण गीतम्
__राग-गुण्ड मिश्र पारकी होड तुम करि रे प्राणिया, - पुण्य पाखइ म करि हूंसि खोटी । बापड़ा जीव बावी तई जउ बाजरी,
कहि किम लुणिसितुं सालि मोटी|पा०॥१॥ जउतंइ सोनार नई जसद घड़िवा दियउ,
तउ तूं मांगइ किम कनक त्रोटी। देखि हनुमंत की हूंसि माहे रली,
राम बगसीस कीनी कछोटी पा०॥२॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org