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(४३०)
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
मन धोबी गीतम् धोबीड़ा तू धोजे रे मन केरा धोतिया,मत राखे मैल लगार। इणमइले जग मैलो करचउ रे,विण धोयां तू मत राखे लगा।धो.१। जिन शासन सरोवर सोहामणोरे, समकित तणी रूड़ी पाल। दानादिक चारु ही बारणा, मांहे नवतत्व कमल विशाल धो.।२। त्यां झीलइ रे मुनिवर हँसला, पीवै छइ तप जप नीर । शम दम आदि जे शीला रे, तिहां पखाले आतम चीर धो.।३। तपवजे तप नइ तड़के करी रे, नालवजे नव ब्रह्मवाड़। छांटा उडाड़े रे पाप अढार नारे, जिम उजलो हुवे ततकाल । धो.।४। आलोयण साबुड़ो सुद्धि करी रे, रखे आवे नी माया सेवाल। निश्चय पवित्र पणो राखजे, पछड़ आपणो नेम संभाल । धो.।। रखे तूं मूके तो मन मोकलो रे, चाल मेली नइ संकेल । समयसुन्दर नी आ छइ सोखड़ी, सीखड़ली मोहन वेल । धो.।६।
माया निवारण सज्झाय माया कारमी रे माया म करो चतुर सुजाण । काया माया जन विलुद्धि, दुखिया थाई जाण ॥१॥ माया कारण देश देसांतर, अटवी वन मां जावै रे । प्रवहण बइसी धीर द्विपांतर, सायर मां झपावै रे ॥२॥ माया मेली करी बहु भेली, लोभे लक्षण जाय रे । भीतें धन धरती में पालै, ऊपर विषहर थाय रे ॥३॥
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