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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
सांभलि सीख सोहामणी, ममता थी मन वाल । समयसुन्दर कहइ जीव नइ, सूधउ संजम पाल ए०।४।
जीव प्रतिबोध गीतम् ।
असारा जाण असार संसार,करि ध्रम प्रालि म हारि जमारा।ऐ.। मात पिता प्रियु कुटुंब सनेहा, स्वार्थ बिनु दिखरावई छेहा ।।ऐ.। धन यौवन सब चंचल होइ, राख्या न रहइ कवहीं सोई ।३।ऐ.। जीर्ण पात परे ज्युं समीरा, तहसा री जीवत अथिर सरीरा।४ाऐ.। जिण शिर चामर छत्र धराते. वो भी रे छोरि गये चिल्लाते।शए.। बहुत उपाय किये क्या होई है है, मरण न छूटइ कोई ऐ.। पोप करी पिछताणा भारी,हारया रे हाथ घसै ज्युं जुआरी ऐ.। किणही की जियु वात न करणी, अपनी करणी पार उतरणी।बाएं। मगनयणी नयणे म लुभाये, ध्यान धर्म सुं जीव चित लाये।हाऐ.। समयसुंदर कहइ जीवसुं विचारी,या हित सीख करे सुखकारी ।१०ऐ.।
धम महिमा गीतम रे जीया जिन धर्म कीजियइ, धरम ना चार प्रकार । दान शील तप भावना, जग मई एतलउ सार रे.।१। वरस दिवस नई पारणइ, आदीसर सुखकोर । इचरस दान वहिरावियउ, श्री श्रेयांस कुमार रे.।२। चंपा बार उघाड़ियउ, चालणी काढयउ नीर । सती सुभद्रा यश थयउ, शीले सुर गिरि धीर ।रे।३।
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